अब फर्क नही पड़ता मुझे उस बेवफा के किसी भी अंदाज़ से ,
निकाल दिया है हमने उन्हें अपने दिल -ओ -दिमाग से ,
"वक़्त तेरे पास नही ,तो हम भी कहाँ खाली हैं",
अब हम भी कह सकते हैं ,उनसे ये रुबाब से ,
ज़रा भी अफ़सोस ना हुआ आज ,अपने इस फैंसले से ,
सारे पन्ने फाड़ दिए उसके ,अपनी याद -ए -किताब से ,
बड़ा आज़ाद सा महसूस कर रहें अब हम खुद को ,
अजीब सी राहत मिली है दिल को ,
इस नए आगाज़ से ,
अब कहाँ फुर्सत है हमें गम में खोये रहने की ,
सुकून के पल मिल रहे है करोड़ो की तादाद में ,
आज एक बार फिर दुनिया आबाद सी लगती है ,
वरना पहले खुद को ही लगते थे हम बर्बाद से ,
चल ''मीनू " बहुत हुआ ये रोना -धोना ,
कुछ लोग ढूंढते हैं जहान में खुशमिज़ाज़ से। ........,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मीनू तरगोत्रा
No comments:
Post a Comment